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साधु का दर्शन पुण्य के उदय से प्राप्त होता है : मुनिश्री तीर्थप्रेम विजयजी

रायपुर।श्री संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचनमाला जारी है। रविवार को महामंगलकारी शाश्वत नव पद ओली की आ...

रायपुर।श्री संभवनाथ जैन मंदिर विवेकानंद नगर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचनमाला जारी है। रविवार को महामंगलकारी शाश्वत नव पद ओली की आराधना का पांचवा दिन रहा। पांचवे दिन साधु पद की आराधना की गई। ओजस्वी प्रवचनकार मुनिश्री तीर्थप्रेम विजयजी म.सा.ने कहा कि साधु का दर्शन भी पुण्य के उदय से प्राप्त होता है। यदि साधु का दर्शन हो गया और साधु के द्वारा नवकार मंत्र कान में पड़ गया तो जीवन सुधर जाएगा और आने वाला भव भी सुधर जाएगा।

मुनिश्री ने कहा कि नव पद जी भगवंत को एक श्रेणी में रख दिया जाए तो आज का दिन जो है वह नवपद जी के केंद्र में विराजमान साधु पद है,आज साधु पद की आराधना का दिन है। अरिहंत,सिद्ध,आचार्य, उपाध्याय और फिर साधु पद आता है लेकिन साधु पद ही है जो आगे जाकर उपाध्याय पद प्राप्त करता है। इसी तरह क्रमशः आगे बढ़ सकता है। उपाध्याय पद की जड़ ही साधु है। ऐसे ही सभी पद प्राप्त करने के लिए सबसे पहले साधु बनना पड़ता है।

मुनिश्री ने कहा कि सिद्ध भगवंत भी बनना है तो साधु बनकर साधना करनी पड़ेगी। भगवान महावीर स्वामी,भगवान ऋषभदेव भी सबसे पहले साधु ही बने। साधु बनकर ही कोई भी ऊपर तक पहुंच सकता है। सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र, सम्यक तप साधु में रहता है। साधु अपना विकास कर ऊपर तक पहुंचता है

मुनिश्री ने कहा कि साधु के पास वस्त्र का वैभव है। साधु के वस्त्र का वैभव अद्भुत है। साधु के वस्त्र के दर्शन मात्र हो जाएं तो उसका भी अलग प्रभाव है। वैसे ही साधु का दर्शन भी पुण्य के उदय से प्राप्त होता है। साधु तीर्थ स्वरूप होता है। तीर्थ पर समय पर जाकर ही दर्शन करने पड़ते हैं, उसके लिए एक समय होता है और तीर्थ में जाकर ही दर्शन फलता है लेकिन साधु का दर्शन तो तुरंत ही फलता है। यदि साधु का दर्शन हो गया तो सामने वाले के पुण्य का उदय हो जाता है।

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