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अबूझमाड़: घने जंगलों में सुरक्षा बलों की ऐतिहासिक जीत, तीन बड़े नक्सली ढेर

 अबूझमाड़। यह नाम सुनते ही घने जंगलों, कठिन पहाड़ियों और वहां छिपे खतरनाक नक्सलियों का ख्याल आता है। जहां आम इंसान का पहुंचना मुश्किल होता ह...



 अबूझमाड़। यह नाम सुनते ही घने जंगलों, कठिन पहाड़ियों और वहां छिपे खतरनाक नक्सलियों का ख्याल आता है। जहां आम इंसान का पहुंचना मुश्किल होता है, वहां सुरक्षा बलों ने एक बड़ा कारनामा कर दिखाया है। छत्तीसगढ़ का यह दुर्गम इलाका वर्षों से नक्सलियों का अड्डा बना हुआ था, पर अब हालात बदलने लगे हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में चलाए गए "माड़ बचाओ" अभियान ने इस इलाके में शांति की एक नई उम्मीद जगाई है। सुरक्षा बलों ने सात दिनों तक चले एक लंबे और चुनौतीपूर्ण अभियान में न केवल नक्सलियों को करारा जवाब दिया, बल्कि उनके सबसे बड़े नेताओं में से तीन को भी खत्म कर दिया। 



यह मुठभेड़ 23 सितंबर 2024 को अबूझमाड़ के परादी के जंगलों में शुरू हुई, जब सुरक्षा बलों ने खुफिया जानकारी के आधार पर नक्सलियों के एक बड़े समूह को घेर लिया। सुरक्षा बलों ने तत्काल मोर्चा संभालते हुए नक्सलियों से आत्मसमर्पण करने को कहा, परंतु नक्सलियों ने जवाब में गोलीबारी शुरू कर दी। इसके बाद, सुरक्षा बलों ने भी मुंहतोड़ जवाब दिया और रुक-रुक कर चली मुठभेड़ में तीन कुख्यात नक्सली मारे गए। इनमें सबसे प्रमुख डीकेएसजेडसी के रूपेश थे, जिन पर ₹25 लाख का इनाम था। उनके साथ डीव्हीसीएम जगदीश और महिला नक्सली सरिता उर्फ बसंती भी मारे गए, जिन पर क्रमशः ₹16 लाख और ₹8 लाख का इनाम था।


सात दिन का संघर्ष और नक्सलियों का पतन


अबूझमाड़ में 124 घंटों तक चले इस सर्च ऑपरेशन में डीआरजी, एसटीएफ और बीएसएफ की टीमें शामिल थीं। यह अभियान नारायणपुर, कोण्डागांव और दंतेवाड़ा जिलों में एक साथ संचालित हुआ। मुठभेड़ के बाद घटनास्थल से भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक बरामद किए गए, जिनमें एके-47, इंसास, एसएलआर, और बीजीएल लॉन्चर जैसे अत्याधुनिक हथियार शामिल थे। 


मारे गए नक्सलियों में रूपेश सबसे खतरनाक था। उस पर 66 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज थे, जिनमें 2009 का मदनवाड़ा हमला भी शामिल था, जिसमें 29 जवान शहीद हुए थे। जगदीश, डीव्हीसीएम, पर 43 से ज्यादा मामले दर्ज थे, और सरिता नक्सली कंपनी नंबर 10 की प्रमुख सदस्य थी।


मुख्यमंत्री का नेतृत्व: सतत समीक्षा और विकास की दिशा


छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का नेतृत्व नक्सल विरोधी अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। मुख्यमंत्री स्वयं इन अभियानों की निरंतर समीक्षा कर रहे हैं, और हर कदम की बारीकी से निगरानी करते हैं। पुलिस अधिकारियों से समय-समय पर फीडबैक लेकर, साय ने यह सुनिश्चित किया है कि हर अभियान नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक साबित हो। उनका उद्देश्य स्पष्ट है—नक्सल प्रभावित इलाकों को आतंक से मुक्त कर, वहाँ शांति और सुरक्षा का वातावरण स्थापित करना। मुख्यमंत्री ने कहा, "हम अबूझमाड़ और अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को पूरी तरह से मुक्त करेंगे, ताकि वहाँ के लोगों को विकास और स्थिरता का अनुभव हो।"


मुख्यमंत्री साय का ध्यान केवल सुरक्षा अभियानों तक सीमित नहीं है। वह इन इलाकों में विकास कार्यों को भी अत्यधिक प्राथमिकता दे रहे हैं। सड़क निर्माण, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं को तेज़ी से लागू करने के लिए उन्होंने विशेष निर्देश दिए हैं।


*केंद्रीय गृह मंत्री की मॉनिटरिंग*


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लगातार छत्तीसगढ़ में चला जाए नक्सली अभियान और इन क्षेत्रों में हो रहे विकास कार्यों की रिपोर्ट सीधे मुख्यमंत्री से ले रहे हैं। शाह ने कहा था कि नक्सलियों के पास अब दो ही रास्ते बचे हैं—या तो वे आत्मसमर्पण करें या सुरक्षा बलों की कार्रवाई का सामना करें। उनका यह बयान नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने और शांति की राह अपनाने के लिए प्रेरित करने वाला है, जिससे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास और सुरक्षा की दिशा में सकारात्मक बदलाव आ सके।


*ग्रामीणों में उमंग और नक्सलियों की हार*


अबूझमाड़ की इस ऐतिहासिक मुठभेड़ ने वहां के ग्रामीणों को एक नई आशा दी है। नक्सल आतंक के साए में जी रहे लोग अब अपनी आजादी और विकास की उम्मीद में जी रहे हैं। सुरक्षा बलों के इस साहसिक अभियान ने साबित कर दिया है कि नक्सलियों का अबूझमाड़ में अब टिक पाना असंभव है। 


पुलिस महानिरीक्षक बस्तर रेंज सुंदरराज पी. ने बताया कि इस वर्ष बस्तर क्षेत्र में 157 नक्सलियों के शव बरामद किए गए हैं, 663 को गिरफ्तार किया गया है, और 556 ने आत्मसमर्पण किया है। अबूझमाड़ में नक्सलियों की कमर टूट चुकी है और बहुत जल्द यह क्षेत्र पूरी तरह नक्सल मुक्त हो जाएगा।

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