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GM सरसों की खेती होने पर आयात पर निर्भरता होगी खत्म, तेल भी होगा निर्यात

  देश के किसानों के लिए खुशखबरी है. जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने व्यावसायिक खेती के लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसो...

 


देश के किसानों के लिए खुशखबरी है. जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) ने व्यावसायिक खेती के लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों को मंजूरी दे दी है. यह खबर इसलिए अहम है क्योंकि भारत 65 फीसदी खाद्य तेल आयात करता है. इसकी लागत करीब एक लाख करोड़ आती है. अब इस फैसले से आयात पर निर्भरता कम होगी. कपास की तरह अब भारत तेल का भी निर्यात करने लगेगा. 20 साल बाद इसे मंजूरी मिली है. खाद्य कृषि क्षेत्र में यह पहली मंजूरी है.


खास बात यह है कि जिस जीएम सरसों को मंजूरी दी गई है उसे दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर डॉ. दीपक पेंटल द्वारा विकसित किया गया है. यह सरसों की किस्म धारा मस्टर्ड हाइब्रिड -11 (डीएमएच-11) है. दरअसल, बीते 18 अक्तूबर को जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रैजल कमेटी (जीईएसी) की 147वीं बैठक हुई थी. इसी बैठक में इसकी सिफारिश की गई थी. सरसों की इस किस्म को चालू रबी सीजन में उगाया जाएगा या नहीं इसके लिए सरकार के फैसले का इंतजार करना होगा. जीईएसी की सिफारिशों को सरकार की मंजूरी मिलने के बाद ही इसे चालू सीजन में उगाना संभव हो पाएगा.


डीएमएच-11 में दो एलियन जीन होते हैं, जिन्हें बैसिलस एमाइलोलिफेशियन्स नामक मिट्टी के जीवाणु से अलग किया जाता है. जो उच्च उपज देने वाले वाणिज्यिक सरसों के संकरों के प्रजनन को सक्षम बनाता है. जीएमओ प्रौद्योगिकी आधारित फसल के समर्थकों का कहना है कि घरेलू तिलहन और वनस्पति तेलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए यह आवश्यक था. भारत सालाना केवल 8.5-9 मिलियन टन (mt) खाद्य तेल का उत्पादन करता है, जबकि 65 फीसदी खाद्य तेल आयात करता है जिसकी लागत 1 लाख करोड़ आती है. जीएम सरसों की खेती होने पर आयात पर निर्भरता खत्म हो जाएगी और कपास की तरह भारत तेल भी निर्यात करने लगेगा.


बता दें कि जीएम सरसों पर पेटेंट संयुक्त रूप से भारत के राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर दीपक पेंटल के अधीन हैं. 2002 और अब के बीच, जीईएसी, जिसे पहले जेनेटिक इंजीनियरिंग अनुमोदन समिति के रूप में जाना जाता था, ने बीटी बैंगन को मंजूरी दे दी थी, लेकिन सुरक्षा के बारे में अपर्याप्त वैज्ञानिक साक्ष्य के आधार पर तत्कालीन पर्यावरण मंत्री द्वारा व्यावसायिक रिलीज पर रोक लगा दी गई थी.



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