रायपुर. छत्तीसगढ़ ऐसी पावन धरती है जहां एक बेजुबान जानवर को उसकी वफादारी के लिए देवता का दर्जा दिया जाता है और प्रदेश के मुखिया खुद इस गहर...
रायपुर. छत्तीसगढ़ ऐसी पावन धरती है जहां एक बेजुबान जानवर को उसकी वफादारी के लिए देवता का दर्जा दिया जाता है और प्रदेश के मुखिया खुद इस गहरी लोकपरंपरा के सम्मान में सिर नवाते हैं. इसी की बानगी आज दिखी, जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने बालोद जिले के भेंट मुलाकात कार्यक्रम के दूसरे दिन की शुरुआत खपरी स्थित कुकुरदेव मंदिर में पूजा-अर्चना से की.
आस्था और आश्चर्य का अद्भुत संगम कुकुरदेव मंदिर मानव-पशु प्रेम की अनोखी मिसाल पेश करता है. यहां एक स्वामिभक्त कुत्ते की समाधि है, जो लोकमान्यता के अनुसार अपने मालिक के प्रति आखिरी सांस तक वफादार रहा. मुख्यमंत्री ने कुकुरदेव मेदिर में पूजा-अर्चना कर प्रदेश की सुख समृद्धि और खुशहाली की कामना की. मुख्यमंत्री ने मंदिर में रुद्राक्ष के पौधे का भी रोपण किया. उन्होंने मन्दिर के पुजारियों को वस्त्र भी दिए.
स्वामी भक्त कुत्ते का स्मृति स्थल है कुकुरदेव मंदिर
मनुष्य के गुण उसे देवता बना देते हैं, ये हम सबने सुना है, मगर क्या किसी पशु के दैवीय गुण उसे पूजनीय बना सकते हैं? क्या कोई ऐसा मंदिर हो सकता है, जहां किसी स्वामिभक्त कुत्ते की समाधि हो और वहां लोग आस्था से अपने सर झुकाएं. ऐसा ही एक अनोखा मंदिर है बालोद जिले का कुकुरदेव मंदिर, जहां आज मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहुंचे और कर्तव्यपरायणता का प्रतीक बन चुके बेजुबान जानवर की स्मृति को नमन किया.
जनश्रुति के अनुसार खपरी कभी बंजारों की एक बस्ती थी, जहां एक बंजारे के पास एक स्वामी भक्त कुत्ता था. कालांतर में क्षेत्र में एक भीषण अकाल पड़ा, जिस वजह से बंजारे को अपना कुत्ता एक मालगुजार को गिरवी रखना पड़ा. मालगुजार के घर एक दिन चोरी हुई और स्वामीभक्त कुत्ता चोरों द्वारा छुपाए धन के स्थल को पहचान कर मालगुजार को उसी स्थल तक ले गया. मालगुजार कुत्ते की वफादारी से प्रभावित हुआ और उसने कुत्ते के गले में उसकी वफादारी का वृतांत एक पत्र के रूप में बांधकर कुत्ते को मुक्त कर दिया.
गले में पत्र बांधे यह कुत्ता जब अपने पुराने मालिक बंजारे के पास पहुंचा तो उसने यह समझ कर कि कुत्ता मालगुजार को छोड़कर यहां वापस आ गया क्रोधवश कुत्ते पर प्रहार किया, जिससे कुत्ते की मृत्यु हो गई. बाद में बंजारे का पत्र देखकर कुत्ते की स्वामी को भक्ति और कर्तव्य परायणता का एहसास हुआ और वफादार कुत्ते की स्मृति में कुकुर देव मंदिर स्थल पर उसकी समाधि बनाई. फणी नागवंशीय राजाओं द्वारा 14वीं-15वीं शताब्दी में यहां मंदिर का निर्माण करवाया गया.
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